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सु॒प्रती॑के वयो॒वृधा॑ य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॑। दो॒षामु॒षास॑मीमहे ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

supratīke vayovṛdhā yahvī ṛtasya mātarā | doṣām uṣāsam īmahe ||

पद पाठ

सु॒प्रती॑के॒ इति॑ सु॒ऽप्रती॑के। व॒यः॒ऽवृधा॑। य॒ह्वी इति॑। ऋ॒तस्य॑। मा॒तरा॑। दो॒षाम्। उ॒षस॑म्। ई॒म॒हे॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:5» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (सुप्रतीके) उत्तम विश्वास करने (वयोवृधा) सुन्दर जीवन को बढ़ाने और (यह्वी) बड़े (ऋतस्य) सत्य के (मातरा) आदर देनेवाले (दोषाम्) रात्रि और (उषासम्) दिन की (ईमहे) याचना करते हैं, वैसे इन की आप लोग भी याचना करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे रात्रि और दिन एक साथ ही वर्त्तमान हैं, वैसे ही जिन्होंने विवाह किया, ऐसे स्त्री पुरुष वर्त्ताव करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा वयं सुप्रतीके वयोवृधा यह्वी ऋतस्य मातरा दोषामुषासमीमहे तथैते यूयमपि याचध्वम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुप्रतीके) सुष्ठु प्रतीतिकरे (वयोवृधा) ये वयः कमनीयं जीवनं वर्धयतः (यह्वी) महत्यौ (ऋतस्य) सत्यस्य (मातरा) मान्यप्रदे (दोषाम्) रात्रीम् (उषासम्) दिनम्। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (ईमहे) याचामहे ॥६॥
भावार्थभाषाः - यथा रात्रिदिने सहैव वर्त्तेते तथैव कृतविवाहौ स्त्रीपुरुषौ वर्त्तेयाताम् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे रात्र व दिवस बरोबरच असतात तसाच व्यवहार विवाहित स्त्री- पुरुषांनी करावा ॥ ६ ॥